ख़बर की दास्तां
हां,मैने ख़बरों को करीब से देखा है
कलम और स्याही के दम को देखा है
ख़बर जो होती है समाज का आईना
मैने उस आईने में ख़बरों को सिसकते देखा है
जिसे कहते है लोकतंत्र का चौथा खंबा
उसी खंबे को मैने अक्सर दरकते देखा है
न आता है एतबार अब इन ख़बरों पर
इन ख़बरों को मैने तिज़ोरी से निकलते देखा है
कहते है कि बिक नहीं सकती है यहां कोई ख़बर
मैने ख़बरों की भी बोली निकलते देखा है
ख़बरनवीस ही होते है इनके रहनुमा
इन्हीं के हाथों मैने इन्हें तिल तिल मरते देखा है
समझ नहीं आता की किस पर एतबार करुं
इन ख़बरों को दलालो के घरो से निकलते देखा है
कलम की ताकत से किसी को ऐतराज़ नहीं
इसी ताकत से मैने अरमानों को कुचलते देखा है
पहले होती थी ख़बरों की अहमियत
अब इन्हीं अहमियत से ख़बरों को झगड़ते देखा है
हां,मैने ख़बरों को करीब से देखा है
2 टिप्पणियाँ:
bhooot khoob bhai
ye aapka naya awatar mujhe achambhit kar gaya.
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