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शनिवार, 17 जुलाई 2010

कुछ करो पवार साहब !






देश को है आई पी एल से ज्यादा बी पी एल सुविधाओं की दरकार









अनाज को तरसते को गरीब


हिंदुस्तान को किसी ज़माने में सोने की चिड़िया कहा जाता था ऐसा अक्सर हम बचपन से सुनते आए है और किताबों में भी पढ़ते आए है पर आज के हिंदुस्तान का असली चेहरा पूरे विश्व के सामने है दो जून की रोटी के लिए रोज़ संघर्ष करने वालो की संख्या विश्व के किसी देश के मुकाबले हिंदुस्तान में सबसे अधिक है इसके आठ राज्यों में सबसे ज्यादा 42 करोड़ गरीब लोग बसते है, जहां किसी ज़माने में अपने लोगो को दो जून की रोटी दिलाने के लिए ख़ैरात के तौर पर अमेरिका से घटिया लाल गेहूं लिया जाता था वही आज अपने खून पसीने अपने ही देश में पैदा हुआ उम्दा गेहूं कुडे में पड़ा सड़ने रहा है और दूसरी ओर इसी की तलाश में गरीब लोग अपना घर द्वार छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर फुटपाथ पर नरकीय जीवन बिताने को मजबूर है पर हैरानी की बात ये है कि इसके बावजूद कृषि प्रधान देश के कृषि मंत्री जो आजकल क्रिकेट मंत्री के तौर पर ज्यादा जाने-पहचाने जाते है माननीय शरद पवार साहब को ये समस्या अभी भी क्रिकेट की समस्याओं के मुकाबले कमतर ही लगती है  
एफ सी आई गोदामों मे सड़ता अनाज
इससे बडी विडम्बना और क्या होगी कि कृषि प्रधान देश में हर साल 20 हजार टन गेहूं गोदामों मे रखा रखा ही सड़ जाता हो, ऐसा सरकारी तौर पर माना जाता है पर गैर सरकारी तौर पर माने तो ये आँकड़ा 1 लाख टन गेहूं से भी अधिक है ये आँकड़े उस समय हमें ज्यादा चिढ़ाते हुए नज़र आते है जब हमारे देश के 8 राज्यों के गरीब आफ्रिका के 26 देशो की ग़रीबों की तुलना में कही ज्यादा है,बिहार. झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल में 42 करोड़ से ज्यादा लोग बसते है जबकि आफ्रिका के 26 सबसे गरीब देशो की तादाद महज 41 करोड़ ही है हमारे इन्हीं 8 राज्यों में भारत के आधे से ज्यादा और पुरी दुनिया के एक तिहाई से ज्यादा गरीब लोग रहते है ऐसे में देश की 37 फीसदी आबादी याने की तकरीबन 9 करोड़ परिवार ग़रीबी रेखा के नीचे याने बीपीएल योजना के तहत आते है इनमें से तकरीबन 2 करोड़ 50 लाख परिवार अत्यंत गरीब है जिन्हें जीवन यापन के लिए अन्त्तोदय योज़ना के तहत 2 रुपये किलो गेहूं और 3 रुपये किलों मे चावल सरकार मुहैया कराती है, इस सब के लिए सरकार द्वारा प्रतिवर्ष तकरीबन 1 करोड़ 70 लाख टन अनाज जारी किया जाता है ये उन खुदकिस्मत गरीबो के लिए है जिनका नाम सरकारी आंकड़ो में दर्ज है पर वे करोड़ो गरीब न तो जिनके पास कोई कार्ड है और न ही किसी फाइलों या योजनाओं में उनका नाम है वे आज भी इस बेतरतीब मंहगाई में अनाज खरीदकर खाने के लिए मज़बूर है पर सबसे बड़ा सवाल ये है कि वे इसे खरीदे तो खरीदे कैसे इसके लिए उनके पास पैसे ही नही है ।
दूसरी ओर देश के अनाज का भंडारण करने वाली सरकारी एजेंसियों और एफ सी आई के गोदामों में लाखों करोड़ो टन अनाज पड़ा सड़ रहा है एफ सी आई के अधिकारी इन्हें भंडारण की समस्या मानकर अपना पल्लू झाड़ने में लगे रहते है। कृषि मंत्री पवार साहब की माने तो अभी स्थिति काबू में है देश में सिर्फ 0.3 प्रतिशत अनाज ही सड़ने की स्थिति में है पर ये आंकड़े अफसरों के द्वारा घालमेल कर फाईलों में बनाएं जाते है वस्तुस्थिती इसके काफी विपरीत है अफ़सर इस आंकड़े की कभी भी 0.5 से ज्यादा फाईलो में बढ़ने नही देते जिनके चलते उनपर किसी प्रकार की कार्यवाही हो सके,रही बात सड़े गले आनाजों की तो उन्हें फिर से बोरों में भरकर उन करोड़ो गरीब लोगो के लिए भेज दिया जाता है जो सरकारी रहमों करम पर अपने पेट की आग बुझाने के लिए मजबूर रहते है
विश्वपटल पर सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बनने के ख्वावों में डूबें देश का वर्तमान हालात क्या इसे कभी हकीक़त के धरातल पर ला पाएंगी । हिंदुस्तान एक कृषि प्रधान देश है यहा कि अर्थव्यवस्था पुरी तरह कृषि पर ही निर्भर रहती है ऐसे में सरकारी अव्यवस्थाओं के चलते देश के अन्नदाता के खून पसीने से उपजे अनाजों की इस हालात का रोना कौन रोऐंगा, निश्चित तौर पर परोक्ष रुप से इसका असर अन्नदाताओं पर अवश्य पड़ेगा। ग़रीबों का क्या वे तो सरकार के रहमों करम पर ही अपना जीवन यापन करने को मजबूर है और लगभग आगे भी रहेंगें । इसे विडम्बना नही तो और क्या कहेंगें की एक तरफ तो गोदामों में अनाजों के ढेर सड़ने को मज़बूर है और दूसरी ओर इन्हीं अनाजों के लिए टकटकी बांधे गरीब तिल-तिल भूखों मरने को विवश है
हालात काबू में है और,प्लीज मीडिया इसे ज्यादा तूल न दे ... ये बयान है खेत खलिहानो से दूर क्रिकेट के मैदान पर चियर्सगल्रर्स के ठुमकों का आंनद उठाने में ज्यादा मसगूल रहने वाले हमारें देश के कृषि मंत्री श्री शरद पवार साहब का । देश की कृषि नीति से ज्यादा क्रिकेट नीति की ओर इनका ज्यादा रुझान रहता है इनकी माने तो देश में हालात अभी काबू में है और स्थितीयां पहले से बेहतर हो रही है पर असली चेहरा तो देश की इन आठ राज्यों के किसी भी गांवो कस्बों मे जाकर आसानी से देखा जा सकता है जिन्हें आज भी आई पी एल से ज्यादा बी पी एल की सुविधाओं की ज़रुरत है।

5 टिप्पणियाँ:

ASHOK BAJAJ अगस्त 23, 2010  

रक्षाबंधन के पावन पर्व पर आपको हार्दिक बधाई !!

ASHOK BAJAJ अगस्त 23, 2010  

रक्षाबंधन के पावन पर्व पर आपको हार्दिक बधाई !!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ सितंबर 11, 2010  

Please!
Samajhne kee koshish kijiye....
He is soooooooo Busy.......
BPL...... Time nahin hai!
Ashish

Manoj Khandekar सितंबर 19, 2010  

नवीन अपनी प्रतिभा का यूं जाया मत जाने दो। तुम में टेलेंट है और गहरी सोच भी। इसका सही इस्‍तेमाल करो। गुड राइटिंग। कीप इट अप।

आपका स्वागत है कृपया अपना मार्गदर्शन एवं सुझाव देने की कृपा करें-editor.navin@gmail.com या 09993023834 पर काल करें

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