Navin Dewangan. Blogger द्वारा संचालित.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~आपका स्वागत है~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

खबरें खास:


~~~~~~आज आपका दिन मंगलमय हो~~~~~~

रविवार, 12 सितंबर 2010

मेरी प्यारी हिन्दी,मुझे माफ करना

 चल रे मटकी टम्मक टू .... को  जॉनी जॉनी यस पापा..... के सामने न जाने कितनी दफा शर्मिंदा होना पड़ा , अ-अनार के सामने ए-ऐपल्ल का, हमेशा से ही भारी पड़ा , पर राष्ट्रभक्त और हिन्दी प्रेम मे मदहोश मेरे माता-पिता ने इसी अ- अनार के सहारे दुनिया फतह करने के लिए सरकारी हिन्दी माध्यमों के स्कुल में मुझे झोंक दिया,बिना ये अंदाजा लगाए आने वाले समय मे उनका ये राष्ट्रप्रेम मेरे भविष्य के सामने सबसे बड़ा रोडा बनकर सामने आऐगा । किसी समारोह दौरान बचपन में याद कि गई हिन्दी कविता अंग्रेजी पोयम के सामने ठीक उसी तरह बेचारगी महसूस करता था जैसे कुछ वर्षो पहले हिंदुस्तान के लोग अंग्रेजो के सामने करते रहे होंगे ।      
बचपन से ही सरकारी स्कुलों मे पढने वाले बच्चे अंग्रेजी में गिटर-पिटर करने वाले बच्चो के सामने हमेशा से ही हीनभावना ही रखते थे,उन्हीं में से एक मै भी था मुझे याद है जब मै सरकारी और तुच्छ समझे जाने वाली हिन्दी मीडियम के स्कुलो में पढ़ता था तब अंग्रेजी स्कुलो के लड़के-लड़कियां मुझे गैरत भरी निगाह से देखा करते थे , बस्तें मे हिन्दी माध्यम कि किताबे अपने को अपमानित सा महसूस करती थी,जिसका बोझ मै हमेशा महसूस करता था । वाट इज यूवर नेम... माई नेम इज.....  वाट इज यूवर फादर नेम.... माई फादर नेम इज... जैसे दो चार शब्द अंग्रेजी का आना अपने आप में हमें कभी कभी गौरवान्वित होने का मौका अवश्य देता था ,पर ज्यादा कुछ ऊपर नीचे होने पर शर्मिंदा भी होना पड़ता था । पड़ोसियों द्वारा मुझे किसी अंग्रेजी स्कुल में दाखिले कि बात मेरे हिन्दी प्रेमी देशभक्त माता-पिता को हमेशा नागवार ही गुजरती थी ।
हमारे स्कुलों में महात्मा गांधी जंयती ,चाचा नेहरु,गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस जैसे  कार्यक्रमो के अलावा कुछ नही था जिसका अफसोस हमे तब होता जब पड़ोस में रहने वाले अंग्रेजी मे गिटर-पिटर करने वाले बच्चे फादर्स डे, मदर्स डे टीचर्स डे, फलाना डे , ढेकाना डे अमका डे, ढमका डे.. और न जाने कौन कौन सा डे आए दिन मनाते देखते थे । बचपन से ही हम कही से अचानक मिली अंग्रेजी अख़बारों का उपयोग रंगीन तस्वीर देखने या फिर अपनी हिन्दी किताबों पर जिल्द चढ़ाने के लिए ही किया करते थे , इन अख़बारों में अर्धनग्न नायक नायिकाओं के रंगीन तस्वीर मेरे लिए ख़ास आकर्षण का केन्द्र रहती थी,जिसे अक्सर मै सलीके से काटकर हिन्दी के किताबों के बीच रख लेता था, जिसे स्कुल में ले जाकर अपने मित्रों को दिखाकर अपनी वाह-वाही लूटा करता था, इससे ज्यादा का उपयोग मेरे समझ से परे था, क्योकि मै हिन्दी राष्ट्र का सच्चा हिन्दीप्रेमी छात्र जो था ।
अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाली लड़कियां मेरे लिए सबसे आकर्षण का केन्द्र हुआ करती थी,अंग्रेजी में गिटर-पिटर करना और उनके छोट-छोटे स्कर्ट मुझे हमेशा उनके मोहपाश में बंधे रहने को मज़बूर किया करती थी,मुझे जैसे हिन्दी मिडियम वाले लड़के को देखकर उनके भौवें सिकोड़ना आम बात थी, यही वह समय होता था जब लगता था कि अ-अनार को छोड़कर ए-एप्पल का दामन थाम लूं ,पर माता-पिता की इच्छा के विपरीत ये सोचना भी मेरे लिए किसी गुनाह से कम नही था,ये अलग बात है कि आज विदेशो में बच्चे अपने माता-पिता को छोटी-छोटी बातों पर कोर्ट कचहरी तक खीच लाते है ।
आई लव यूयही एकमात्र अंग्रेजी का शब्द था जिसने मुझे अपने बचपन से किशोरावस्था में प्रवेश करते समय बहुत साथ दिया । तरह-तरह से आई लव यू बनाना मेरे दिनचर्या में शुमार हो गया था । हिन्दी में मै तुमसे प्यार करता हू की जगह अंग्रेजी में आई लव यू...लिखने में मै गौरान्वित महसूस करता था और अपनी हिन्दीभाषी प्रेमिका पर भी रौब जमाता था। धीरे धीरे मै दुनियादारी के रंग से परिचित होने लगा , मेरी कई सालो की हिन्दी प्रेम की तपस्या का मोहपाश धीरे-धीरे भंग होने लगा , पढ़ाई लिखाई से बाहर निकल जब नौकरी चाकरी की बात आई तब हिन्दीप्रेम कही काम नही आया , नौकरी के लिए आवेदन लिखने से लेकर साक्षात्कार तक सभी जगह ए-फार-एप्पल ने मुझे नकारा साबित करने में कोई कसर नही छोड़ी ,मुझे अपने अ-अनार प्रेम से चीढ़ होने लगी थी, राष्ट्रभाषा , राष्ट्रप्रेम ये मुझे अब अपने सबसे बड़े दुश्मन लगने लगे । नौकरी के लिए जहां जाता किसी न किसी रुप में ए-फार-एप्पल रुपी दानव प्रकट हो जाता और मुझे हर संभव चिढ़ाने की कोशिश करता ।
सब तरफ ए-एप्पल वालो की ही भरमार थी अ-अनार तो बेचारा कुंठित अपने मौत का इंतजार कर रहा है पर उसे सहानुभूति रुपी वेंटीलेटर पर रखकर मरने भी नही दिया जा रहा है , हर कोई सिर्फ और सिर्फ उसके नाम और काम का फायदा उठाने में लगे हुए है, ये वही पल था जब पहली बार मुझे अपने हिन्दीप्रेमी होने का सबसे ज्यादा दुःख होने लगा था , मुझे समझ नही आ रहा था कि इतने वर्षो मैने इस हिन्दीवादी राष्ट्र में हिन्दी की सेवा क्यो कि क्यो उसे अंगीसार किए रखा ? , यही उलाहना भरे पल देखने के लिए ?
पर अब मुझे समझ आ गया है कि हिन्दी प्रेम से काम नही बनने वाला , हिन्दी राष्ट्र में हिन्दी तिल-तिल कर मर रहा है और बाजारीकरण के इस युग में डूबते सुरज को कोई सलाम नही करता , फिर मै क्यो पीछे रहूं । अब मै अपने परिचितो को आप कैसे है कि जगह हाऊ आर यू कहने लगा हुं , दोस्तो मित्रो को नमस्कार की जगह हाय.. बाय.. ओ शिट, स्वारी,प्लीज जैसे शब्दों का उपयोग करने लगा हूं शायद इन सब से काम बन जांए और मै भी विकास की धारा मे ए-एप्पल की सहारे वैतरणी पार कर लूं । आज पहली बार मैने आपने पिताजी को फोन पर पापा कह कर संबोधित किया , उधर से जबाव आया ... यहां कोई पापा नही रहता....?

8 टिप्पणियाँ:

Sunil Kumar सितंबर 12, 2010  

mafi ka saval nahi hai ab to apnana chahiye achha laga aapka lekh

madhurendra सितंबर 13, 2010  

नवीन भाई..आखिरी लाईनें दिल को छू गई...यहां कोई पापा नहीं रहता....सच कहा आपने

मधुरेंद्र पाण्डे सितंबर 13, 2010  

नवीन भाई आखिरी पक्तियां दिल को छू गई..."यहां कोई पापा नहीं रहता"

36solutions सितंबर 14, 2010  

नवीन भाई आपने जो लिखा वो हमारे जैसों की भी कहानी है, पढ़ते हुए बार बार भावुक हो रहे थे हम भी.

जय जोहार ... इंहा कोनो पापा नइ रहय :)

मधुरेंद्र मोहन,  सितंबर 21, 2010  

जी बिल्कुल सही कहा आपने..

बेनामी,  सितंबर 23, 2010  

Amiable fill someone in on and this mail helped me alot in my college assignement. Thank you as your information.

मुकेश कुमार सिन्हा सितंबर 25, 2010  

badi sahi baat kahi aapne
waise ham bhi aapke shrenni ke hi chhatra the..........ek dum waise hi
purn hindi wale..........wahi sarkari school wahi hindi, wahi angreji se duri..........:)

Rahul Singh अक्तूबर 23, 2010  

अंग्रेजी-हिन्‍दी के पक्षों के साथ छत्‍तीसगढ़ी तीसरा कोण भी इन दिनों नुकीला हो रहा है.

आपका स्वागत है कृपया अपना मार्गदर्शन एवं सुझाव देने की कृपा करें-editor.navin@gmail.com या 09993023834 पर काल करें

HTML Marquee Generator

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP