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शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

इट्ज ओनली हेप्पन इन इंडिया



लो एक और इंसान का जीते जी एक और मंदिर बन कर तैयार है हमारी भावी पीढ़ी नारियल फुल माला ले कर इस मंदिर के घंटा बजाकर न जाने कौन-कौन सा वरदान मांगे ? धन्य है भारतनगरी ? और धन्य है यहां रहने वाले? यहा ये सवाल उठना लाज़मी है कि जिस निर्विकार को हम कभी पत्थर,कभी पेड़ तो कभी पानी के रुप में पुजते है वहा एक जीते जागते इंसान की मुर्ति स्थापित कर उसे पुजने में भला हर्ज ही क्या है ये बात तमिलनाडु के जिला पंचायत सलाहकार जी आर कृष्णमूर्ति अच्धि तरह समझते है तभी तो उन्होंने तामिलनाडु के गुदियाथम के पास लाखों रुपयें खर्च कर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक अध्यक्ष एम.करुणानिधि का एक विशालकाय मंदिर बनवाया है वे देश के नागरिको की नब्ज़ अच्छि तरह से समझते है उन्हें मालुम है कि हर तरह से परेशान लोग अपनी समस्या का निदान पाने के लिए आखिर में मंदिर का ही रुख करते है यही उनके हर दुखों से मुक्ति मिलती है फिर क्यों न मंदिर बनवाया जाए इस तरह से उन्होंने अपनी स्वामी भक्ति और आम जनता के प्रति अपना जिम्मेंदारी दोनो का इमानदारी से निर्वहन किया है  ।
वैसे भी हमारे देश मे महापुरषों का मंदिर बनवाने की परंपरा बरसो से चली आ रही है चाहे फिल्म अदाकार रजनीकांत की बात हो या अमिताभ बच्चन की इनका मंदिर आपको अवश्य मिल जाऐंगा फिर राजनीति के किरदार क्यों पीछे रहे, भाई इनका भी तो हक है कि अपने मुर्तियों के आगे धुपबत्ती जलवाएं। इतिहास गवाह है जो भी महापुरुष की श्रेणी में आता है हम तो या उसके नाम से चौराहा बना देते है रोड का नामकरण कर देते है जिले का नाम उसके नाम पर रखते है या हितकारी योजनाओ में इनका नाम जोड देते है इस पर हम इतना ईमानदार और कर्तव्यपरायण रहते है कि इसमे जरा सी भी गलती हम स्वीकार नही कर सकते ये हमारी देश की प्रति वफादारी और हमेशा जागरुक रहने का एक सशक्त उदाहरण है पिछले दिनों की ही बात ले लिजीए उत्तरप्रदेश सरकार ने अमेठी को जिला बना कर इसका नाम दलित महापुरुष छत्रपति शाहूजी महाराज पर रख दिया अब भला ये बात पिछले कई वर्षो तक राज करने वाले कांग्रेस को कैसे रास आ सकता था । इसकी वजह भी साफ है । अमेठी दरअसल नेहरु गांधी परिवार के सियासी पहचान का अहम हिस्सा बन चुका है इसलिए ये मांग उठ रही है कि इस जिले का नाम महापुरुष राजीव गांधी के नाम पर हो । अब कोई भला ये कैसे स्वीकार कर सकता है कि जिस इलाके को जगह गांधी परिवार का गढ़ माना जाए जाता है उस इलाके का नाम किसी और के नाम पर हो।
खैर मैडम मायावती इस मामले में को सियासी तौर पर देखना बिल्कुल पंसद नही करती उनका मानना है कि महापुरुष सिर्फ स्वर्णवर्ग से नही आते दलित समुदाय को भी देश के चौराहो में , सड़को मे , योजनाओं में ,जिलो में अपना नाम जुडवाने का पुरा अधिकार है माननीय काशीराम के नाम पर करोडो रुपये पार्को और मूर्तियों पर खर्च कर मायावती यही जताना चाहती है । पर हमें इन सब को सियासी चश्मों से नही देखना चाहिए हम तो एक आम मतदाता है हम तो एक सीधे साधे भक्त की तरह है जिन्हें मंदिर में रखे भगवान के प्रति आगाध आस्था रहती है हमे इस बात से कोई मतलब नही रहता कि इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया है।
कई शहरों का नाम भी आए दिन बदलते रहते है पुराने डायरी में लिखे कई रिश्तेदारों के पते पर लिखे शहरो के नामो पर कई बदलाव करने पडते है बंबई से मुंबई ,बंगलौर से मैंगलोर और न जाने क्या क्या, कइयो के तो कई बार मुहल्लों चौराहो तक के नाम बदलने पड़ते है ये सिलसिला कब रुकेंगा कह पाना जरा मुश्किल है मजे की बात ये है कि किसी जगह, रोड, चौराहो, संस्थानो के किसी भी नाम पर आम जनता को आज तक किसी प्रकार की कोई तकलीफ नही होती और न ही आज तक इसको लेकर कोई विरोध हुआ हो ऐसा भी देखने में नही आता,पर सियासी तौर पर ये बहुत मायने रखती है नाम,समुदाय और वोटबैक की राजनीति ही इन्हें ऐसा करने को मजबूर करती है किसी पार्टी के सत्ता में ही आते ही धडाधड पार्टी महापुरुषों के नाम की राजनीति शुरु हो जाती है सडको , चौराहो पर इन महापुरुषों की विशालकाय मूर्तिया मुस्कराते हुए दिखने लगती है पर आम जनता को इससे कोई सरोकार नही होता उनके लिए तो महापुरुष महापुरुष ही रहते है उन्हें इस बात का जरा भी इल्म नही रहता कि फला महापुरुष के नाम पर उसके मोहल्ले का नाम क्यो रखा गया ।
नाम की राजनीति का इतिहास हमारे देश में कोई नया नही है इतिहास गवाह है कि इस तरह के काम आए दिन होते रहते है और इससे देश के स्वास्थ्य पर कोई असर नही पड़ता,असर पड़ता है तो जात-पात कि राजनीति करने वाले राजनीतिक पार्टियों पर जिनके पैरोकार इन्ही के बदौलत अपनी राजनीतिक रोटीयां सेकते आए है और आगे भी सेकते रहेंगें ।

4 टिप्पणियाँ:

36solutions जुलाई 03, 2010  

सत्‍य कह रहे है नवीन भाई, ऐसा सिर्फ इंडिया में ही होता है. आलेख के लिए धन्‍यवाद.

नवीन भाई 'शव्‍द पुष्टिकरण' ला हटा देवव, येखर कारन टिप्‍पणी देहे में थोरकिन देरी होथे.

प्रक्रिया : लागईन-डैशबोर्ड-सेटिंग-शव्‍द पुष्टिकरण-नहीं

Jandunia जुलाई 05, 2010  

खूबसूरत पोस्ट

Jandunia जुलाई 05, 2010  

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