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सोमवार, 7 जून 2010

आखिर कब सुधरेंगे हम ?










हम विकसित होने के चाहे लाख दावें कर लें लेकिन आज भी समाज के अंदर वो कुरितियां भरी पड़ी हैं जो सभ्य समाज के नाम पर कलंक हैं और कही न कही हमे विश्वमंच पर अपनी छबि सुधारने के दुरास्वप्न से जागने को मजबूर कर देती है पूरे देश में अमूमन हर दिन एक न एक घटना ऐसे होती ही है जिससे मानवता शर्मसार हुए बिना नही रह सकती. 21 वीं सदीं के ख्वाबों में डूबे देश के दूरदराज के पिछड़े अंचलों में टोनही (डायन) घोषित करके महिलाओं को सरेआम जलील करने जादू-टोना का आरोप लगाकर महिलाओं को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाऐं जाने की घटना अंधविश्वास मिटाने के सारे आंकडो पर भारी पडते दिखाई देते है.

      गांव से लेकर शहरों तक अन्धविश्वास बहुत गहरे पैठा बना चुका है बुरी नज़र, जादू मंत्र आदि होता है, एक किरदार जो हमारे देश में पाया जाता है, उसे क्षेत्रवार- टोनही, टूणी, डाकण, जादू टोना करने वाली औरत के नाम से जाना जाता है. इस अज्ञात भय से लोग डरे रहते हैं कि हमारा और हमारे बच्चे का अनिष्ट हो जायेगा, इसको टोनही खा जायेगी. हमारे काम-धंधे-नौकरी में कुछ व्यवधान आ जायेगा,ऐसे ही क्षेत्रों में मेरा बचपन बीता है जहां गांव-गांव में टोनही, चुडैल, ओझा,बैगा, गुनियां न जाने कितने ही नामों से मेरा सामना अक्सर हुआ करता था,मुझे अच्छी तरह याद है कि जब भी कुछ बीमारी मुझे घेरा करती थी मेरी दादी डॉक्टर के यहां जाने से पहले किसी तांत्रिक के यहा जाने को तरजीह देती थी,किसी बुरी आत्मा का डर या बुरी साया या टोनही का प्रकोप बताकर न जाने बैगा गुनियां तरह तरह से तंत्र –मंत्र किया करते थे पर उससे मुझे कभी फायदा हुआ हो याद नही, ताज्जुब की बात ये है कि ये हालत सिर्फ गांवो में ही नही शहरो में भी पुरी तरह इसकी चपेट में है


     कई गांवो में दलित,विधवा,परित्यक्ता महिलाओं को टोनही या चुडैल साबित कर भरे पंचायत के सामने नंगा कर गांवभर में घुमाया जाना समाज के एक नाकारात्मक मनोविज्ञान को ही परिभाषित करती है आजादी के बाद तरक्की के दंभ भरने से पहले इस तरह की घटनाओं और उसके मनोवैज्ञानिक पहलूओं की अच्छी तरह जांच पडताल करना अति आवश्यक है क्या कारण है कि पिछडे और दबे कुचले समुदाय कि स्त्रियां ही इसका शिकार होती है किसी सभ्रांत परिवार की महिलाओं के साथ ऐसा कभी हुआ हो ये मैने आज तक न देखा न सुना।


    एक तरफ हम विज्ञान की बांह थामें तरक्की कि सीढ़ीयों पर लगातार चढ़ते जा रहे है वही दुसरी ओर इस तरह की तंत्र-मंत्र का अंधविश्वासी खेल भी कुछ कम नही हुआ है अब तो ये गांव,कस्बे से होते हुए शहरों में भी गहरी पैठ बना चुका है.टेलीविज़न माध्यम भी इसमें कम जिम्मेंदार नही है जादू-टोने ,तंत्र-मंत्र से भरे कार्यक्रमो की आज हर चैनल में भरमार है डरा-डरा कर ताबिज़ और नग-नगिने बेचने वालो को तकरीबन हर चैनलों में देखा जा सकता है चैनलो में अब समाज के प्रति नैतिक जिम्मेंदारी नही बची है जिसे इन कामो के प्रति लोगो को सचेत करना चाहिए वही आज इस जैसे तंत्र-मंत्र को तरजीह देकर रंग बिरंगे तरीके से लोगो के सामने पेश करेंगें तो इस देश का बंटाधार होने से कोई नही बचा सकता । कुछ भी हो हम इस तरह के चीजो के प्रति अशिक्षा का रोना रो कर अपना पलडा झाड़ लेते है कि जब तक लोग शिक्षित नही होंगे इस तरह की चीज होती रहेगी ,और अपनी नैतिक जिम्मेंदारीयो से मुक्त हो जाते है आखिर ये सब कब तक चलता रहेगा कब तक हमें इस तरह की खबरों से दो चार होना पड़ेगा ।


2 टिप्पणियाँ:

मधुरेंद्र मोहन,  सितंबर 21, 2010  

क्या लिखा है भाई अदभुत मज़ा आ गया

आपका स्वागत है कृपया अपना मार्गदर्शन एवं सुझाव देने की कृपा करें-editor.navin@gmail.com या 09993023834 पर काल करें

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